विद्युतस्थैतिकी:- वैद्युत की वह शाखा, जिसमें विरामवस्था में रहने वाले आवेश से आवेशित वस्तुओं के गुणों
का अध्य्यन किया जाता है,वैद्युत स्थैतिकी कहलाती है। अथवा
भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें स्थिर आवेशों का अध्य्यन किया जाता है, स्थिर विद्युतिकी कहलाती है।
विद्युत आवेश:- वह भौतिक राशि जो किसी वस्तु की धनात्मकता एवं ऋणत्म्कता को प्रदशित करती है, आवेश कहलाती है।आवेश का मात्रक कूलॉम होता है। यह एक भौतिक राशि है, तथा आवेश को "Q" से प्रदशित करते हैं।
विद्युत आवेश की विशेषतायें:- 1. वैधुत आवेश की प्रकृति धन तथा ऋण होती है अर्थात वैद्युत आवेश धनात्मक एवं ऋणत्मक प्रकृति का होता है।
2. प्रकृति में समान आवेश एक दुसरे को आकर्षित करते हैं, जबकि विपरीत प्रकृति के आवेश एक- दुसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
3. वह गुण जो आवेशों में भेद करता, आवेश की ध्रुवता कहलाता है।
4. किसी वस्तु पर आवेश होने पर उस वस्तु को आवेशित वस्तु कहा जाता है, जबकि उस वस्तु पर कोई आवेश नहीं होता है तो उसे अनावेशित वस्तु कहा जाता है।
आवेश का क्वाण्टमीकरण :- किसी वस्तु पर कुल आवेश इलेक्ट्र्रान के आवेश का पूर्ण गुणज होता है.। जिसे मूल आवेश कहते हैं, इसे "" से प्रदर्शित करते हैं.। आवेश का ये गुण आवेश की क्वाण्टम प्रकृति को दृर्शता है, इसे आवेश का क्वाण्टमीकरण कहते हैं।
अर्थात, एक वस्तु से दुसरी वस्तु पर केवल इलेक्ट्र्रॉनों की पूर्ण संख्या ही स्थानान्तरित हो सकती है।
कूलॉम
जहॉ
आवेश सरंक्षण का सिद्धान्त:- किसी विलगित निकाय का कुल आवेश नियत रहता है, इसे ही आवेश संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं।
या,आवेश को सदैव समान एवं विपरीत प्रकृति के युग्म में ही उत्पन्न किया जा सकता है ओर उदासीन भी किया जा सकता है।
या, किसी विलगित निकाय के कुल आवेश का बीजगणितीय योग सदैव नियत रहता है, यह किसी भी प्रक्रिया के सम्पन्न होने के पश्चात भी अपरिवर्तित रहता है।
कूलॉम का नियम:- दो बिन्दु आवेशों के बीच कार्य करने वाला वैद्युत बल (आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण का बल ) दोनों आवेशों के परिमाण के गुणनफ़ल के अनुक्रमानुपाती होता है, तथा आवेशों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
यदि दो आवेश Q1 तथा Q2 एक दुसरे से मीटर की दूरी पर स्थित हों तो उनके बीच कार्य करने वाला वैद्युत बल F होगा -
----------------(1)
-----------------(2) 
------------------(3)